देर गुज़र के सफ़र के बाद
मिला हैं तर्जुबा एक असर के बाद,
खुली जो आँख तो होश आया
था फिर वहीं ख़्वाब सहर के बाद,
एक खुशनुमा गहरी सांस के लिए
तरस जाएंगे आखरी शजर के बाद,
लौट के जाएं भी तो भला कैसे
कौन दिखायेगा राह हमसफ़र के बाद,
बस यही शायद अब बची हैं एक उम्मीद
मिल जायेंगी मंज़िल इसी समर के बाद ।
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