सबको थोड़ा और चाहिए,
वक्त, इज्ज़त, पैसा, आराम, शोहरत
थोड़ा और..!
कुछ ना कुछ और पाना है
जो है उस से थोड़ा और,
बहुत कुछ खोकर बस थोड़ा और,
सब कुछ अगर दाव पर लगे तो चलेगा,
पर कुछ और,
ये कुछ और का सिलसिला कभी ख़तम नहीं होता,
और बढ़ता रहता है अपनी ही गती से,
ये जो सिलसिला है,
स्वभवतः इसको कुछ नहीं करना है हासिल,
बस चाह बढ़ानी है, भोगी की,
इसको दरियां पार नहीं करना,
बस गोते लगाते रहना हैं,
कुछ देर और,
और गहराई में,
जब थोड़ा थोड़ा कर बहुत कुछ मिल जाता हैं,
तो नज़र खोजती रहती है, जों नहीं मिला उसे,
जो मिला उसके परे, अलग, पार,
ढूंढ़ती रहतीं है कुछ और,
आज का आनंद खो जाता है,
उस कुछ और में जिसके मिल जाने पर भी कभी कोई
समाधान नहीं होगा आंनद नहीं होगा,
सबको थोड़ा और चाहिए, कुछ और ...!